इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा
एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं
दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए
एक दुनिया की कशिश है जो इधर खींचती है
अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया
कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के
इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
आज बाम-ए-हर्फ़ पर इम्कान भर मैं भी तो हूँ
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है