इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं
एक दुनिया की कशिश है जो इधर खींचती है
इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर-ए-अजल पड़ता है
एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं
कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है