हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है
ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं
अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया
इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा
आज बाम-ए-हर्फ़ पर इम्कान भर मैं भी तो हूँ
दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए