दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए
कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के
हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
आज बाम-ए-हर्फ़ पर इम्कान भर मैं भी तो हूँ
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
एक दुनिया की कशिश है जो इधर खींचती है
इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है
अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया