कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है
अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया
एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर-ए-अजल पड़ता है
हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है