एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया
आज बाम-ए-हर्फ़ पर इम्कान भर मैं भी तो हूँ
इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा