हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं
दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए
एक दुनिया की कशिश है जो इधर खींचती है
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया
एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया
कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के