Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_f5dd2b037d1136771f18b5f405eeefac, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए - इरफ़ान सत्तार कविता - Darsaal

दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए

दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए

तेरी यादों के झोंके गुज़रते रहे थपथपाते रहे और हम सो गए

याद आता रहा कूचा-ए-रफ़्तगाँ सर पे साया-फ़गन हिज्र का आसमाँ

ना-रसाई के सदमे उतरते रहे दिल जलाते रहे और हम सो गए

हिज्र के रत-जगों का असर यूँ हुआ वस्ल-ए-जानाँ का लम्हा बसर यूँ हुआ

दोश पर उस के गेसू बिखरते रहे गुदगुदाते रहे और हम सो गए

कैसे तजदीद-ए-अहद-ए-वफ़ा कीजिए ग़म मज़ा दे रहे हैं सो क्या कीजिए

दर पे आ के वो अक्सर ठहरते रहे खटकाते रहे और हम सो गए

अव्वल अव्वल तो हर शब क़यामत हुई रफ़्ता रफ़्ता हमें ऐसी आदत हुई

घर के आँगन में ग़म रक़्स करते रहे ग़ुल मचाते रहे और हम सो गए

(1083) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Dil Ke Parde Pe Chehre Ubharte Rahe Muskuraate Rahe Aur Hum So Gae In Hindi By Famous Poet Irfan Sattar. Dil Ke Parde Pe Chehre Ubharte Rahe Muskuraate Rahe Aur Hum So Gae is written by Irfan Sattar. Complete Poem Dil Ke Parde Pe Chehre Ubharte Rahe Muskuraate Rahe Aur Hum So Gae in Hindi by Irfan Sattar. Download free Dil Ke Parde Pe Chehre Ubharte Rahe Muskuraate Rahe Aur Hum So Gae Poem for Youth in PDF. Dil Ke Parde Pe Chehre Ubharte Rahe Muskuraate Rahe Aur Hum So Gae is a Poem on Inspiration for young students. Share Dil Ke Parde Pe Chehre Ubharte Rahe Muskuraate Rahe Aur Hum So Gae with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.