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अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी - इरफ़ान सत्तार कविता - Darsaal

अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी

अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी

भुला ही देंगे अगर दिल में कुछ गिले हुए भी

हमारी राह अलग है, हमारे ख़्वाब जुदा

हम उन के साथ न होंगे, जो क़ाफ़िले हुए भी

हुजूम-ए-शहर-ए-ख़िरद में भी हम से अहल-ए-जुनूँ

अलग दिखेंगे, गरेबाँ जो हों सिले हुए भी

हमें न याद दिलाओ हमारे ख़्वाब-ए-सुख़न

कि एक उम्र हुए होंट तक हिले हुए भी

नज़र की, और मनाज़िर की बात अपनी जगह

हमारे दिल के कहाँ अब, जो सिलसिले हुए भी

यहाँ है चाक-ए-क़फ़स से उधर इक और क़फ़स

सो हम को क्या, जो चमन में हों गुल खुले हुए भी

हमें तो अपने उसूलों की जंग जीतनी है

किसे ग़रज़, जो कोई फ़तह के सिले हुए भी

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