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मैं कई बरसों से तेरी जुस्तुजू करती रही - इरम ज़ेहरा कविता - Darsaal

मैं कई बरसों से तेरी जुस्तुजू करती रही

मैं कई बरसों से तेरी जुस्तुजू करती रही

इस सफ़र में आरज़ूओं का लहू करती रही

क्या ख़बर तुझ को गुज़ारी कैसे मैं ने शाम-ए-ग़म

आँसुओं का पानी ले कर मैं वुज़ू करती रही

जब तिरी यादों ने मुझ को नीम पागल कर दिया

मैं तिरी तस्वीर से ही गुफ़्तुगू करती रही

किस तरह अपनी तमन्नाओं का मैं करती शुमार

बस तुझे पाने की हर-दम आरज़ू करती रही

दिल के दरवाज़े पे जब भी याद की दस्तक हुई

मैं तसव्वुर में जिगर अपना रफ़ू करती रही

दिल की धड़कन कह रही है तू अचानक आएगा

ख़ुद को दिन-भर आईने के रू-ब-रू करती रही

सोचना भी मत कभी तुझ को भुला देगी 'इरम'

वस्ल की ख़्वाहिश हर इक लम्हा नुमू करती रही

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