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अपने ग़रीब दिल की बात करते हैं राएगाँ कहाँ - इरम लखनवी कविता - Darsaal

अपने ग़रीब दिल की बात करते हैं राएगाँ कहाँ

अपने ग़रीब दिल की बात करते हैं राएगाँ कहाँ

ये भी न हम समझ सके अपना कोई यहाँ कहाँ

उन के लिए वो आसमान मेरा गुज़र वहाँ कहाँ

मेरे लिए यही ज़मीन आएँगे वो यहाँ कहाँ

सामना उन का जब हुआ आँखों ने जो कहा कहा

दिल में हज़ार इश्तियाक़ उन में मगर ज़बाँ कहाँ

उफ़ ये मआल-ए-जुस्तजू बा'द-ए-कमाल-ए-जुस्तजू

पहुँचे वही जगह कहने लगी यहाँ कहाँ

हद्द-ए-नज़र का है फ़रेब क़ुर्ब-ए-ज़मीन-ओ-आसमाँ

वर्ना मिरी ज़मीन से मिलता है आसमाँ कहाँ

हुस्न का पासबान इश्क़ इश्क़ का पासबान दिल

दिल का है पासबान होश होश का पासबाँ कहाँ

मंज़िल-ए-आशिक़ी से कम रुकने की जा नहीं 'इरम'

ये तो अभी है रह-गुज़र बैठ गए यहाँ कहाँ

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