तमाम दिन मुझे सूरज के साथ चलना था
मिरे सबब से मिरे हम-सफ़र पे धूप रही
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दोस्तों में वाक़ई ये बहस भी अक्सर हुई
मौसमों की बातों तक गुफ़्तुगू रही अपनी
इसी सबब से तो हम लोग पेश-ओ-पस में हैं
छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही
अब इलाज-ए-दिल-ए-बीमार-ए-सहर हो कि न हो
मैं कि वक़्फ़-ए-ग़म-ए-दौराँ न हुआ था सो हुआ
एक इक लम्हा कि एक एक सदी हो जैसे
हर बात जो न होना थी ऐसी हुई कि बस