सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को
सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को
मैं कोहर में लिपटा हूँ शफ़क़ चाहिए मुझ को
हो जाए कोई चीज़ तो मुझ से भी इबारत
लिखने के लिए सादा वरक़ चाहिए मुझ को
ख़ंजर है तू लहरा के मिरे दिल में उतर जा
है आँख की ख़्वाहिश कि शफ़क़ चाहिए मुझ को
हो वहम की दस्तक कि किसी पाँव की आहट
जीने के लिए कुछ तो रमक़ चाहिए मुझ को
हर बार मिरी राह में हाइल हो नया संग
हर बार कोई ताज़ा सबक़ चाहिए मुझ को
जो कुछ भी हो बाक़ी वो मिरे हाथ पे लिख दे
मज़मून बहर-तौर अदक़ चाहिए मुझ को
जो ज़ेहन में तस्वीर है काग़ज़ पर उतर आए
दुनिया में नुमाइश का भी हक़ चाहिए मुझ को
हर फूल के सीने में गुल-ए-संग हो 'साजिद'
हर संग में इक रंग-ए-क़लक़ चाहिए मुझ को
(1656) Peoples Rate This