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मुझे नहीं है कोई वहम अपने बारे में - इक़बाल साजिद कविता - Darsaal

मुझे नहीं है कोई वहम अपने बारे में

मुझे नहीं है कोई वहम अपने बारे में

भरो न हद से ज़ियादा हवा ग़ुबारे में

तमाशा ख़त्म हुआ धूप के मदारी का

सुनहरी साँप छुपे शाम के पिटारे में

जिसे मैं देख चुका उस को लोग क्यूँ देखें

न छोड़ी कोई भी बाक़ी कशिश नज़ारे में

वो बोलता था मगर लब नहीं हिलाता था

इशारा करता था जुम्बिश न थी इशारे में

तमाम लोग घरों की छतों पे आ जाएँ

बड़ी कशिश है नए चाँद के नज़ारे में

मिले मुझे भी अगर कोई शाम फ़ुर्सत की

मैं क्या हूँ कौन हूँ सोचूँगा अपने बारे में

पुरानी सम्त मुड़ेगा न कोई भी 'साजिद'

ये अहद-ए-नौ न बहेगा क़दीम धारे में

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Mujhe Nahin Hai Koi Wahm Apne Bare Mein In Hindi By Famous Poet Iqbal Sajid. Mujhe Nahin Hai Koi Wahm Apne Bare Mein is written by Iqbal Sajid. Complete Poem Mujhe Nahin Hai Koi Wahm Apne Bare Mein in Hindi by Iqbal Sajid. Download free Mujhe Nahin Hai Koi Wahm Apne Bare Mein Poem for Youth in PDF. Mujhe Nahin Hai Koi Wahm Apne Bare Mein is a Poem on Inspiration for young students. Share Mujhe Nahin Hai Koi Wahm Apne Bare Mein with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.