लगा दी काग़ज़ी मल्बूस पर मोहर-ए-सबात अपनी
लगा दी काग़ज़ी मल्बूस पर मोहर-ए-सबात अपनी
बशर के नाम कर दी है ख़ुदा ने काएनात अपनी
ख़ला के आर भी मैं हूँ ख़ला के पार भी मैं हूँ
उबूर इक पल में करता हूँ हुदूद-ए-मुम्किनात अपनी
जियूँगा अपनी मर्ज़ी से मरूँगा अपनी मर्ज़ी से
मिरे ज़ेर-ए-तसल्लुत है फ़ना अपनी हयात अपनी
लिखी है मैं ने अपने हाथ पर तहरीर-ए-आइन्दा
मिरी अपनी विरासत है क़लम अपना दवात अपनी
मैं ख़ुद पर आज़माऊँगा ख़ुद अपना आख़िरी दाव
ख़बर है मुझ को 'साजिद' जीत बन जाएगी मात अपनी
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