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दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया - इक़बाल साजिद कविता - Darsaal

दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया

दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया

और हम ने शायरी के सिवा कुछ नहीं किया

ग़ुर्बत भी अपने पास है और भूक नंग भी

कैसे कहें कि उस ने अता कुछ नहीं किया

चुप-चाप घर के सेहन में फ़ाक़े बिछा दिए

रोज़ी-रसाँ से हम ने गिला कुछ नहीं किया

पिछले बरस भी बोई थीं लफ़्ज़ों की खेतियाँ

अब के बरस भी इस के सिवा कुछ नहीं किया

ग़ुर्बत की तेज़ आग पे अक्सर पकाई भूक

ख़ुश-हालियों के शहर में क्या कुछ नहीं किया

बस्ती में ख़ाक अड़ाई न सहरा में हम गए

कुछ दिन से हम ने ख़ल्क़-ए-ख़ुदा कुछ नहीं किया

माँगी नहीं किसी से भी हमदर्दियों की भीक

'साजिद' कभी ख़िलाफ़-ए-अना कुछ नहीं किया

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