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बे-ख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ - इक़बाल साजिद कविता - Darsaal

बे-ख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ

बे-ख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ

दोस्तो मेरे दुखों को मुश्तहर करते हो क्यूँ

कोई दरवाज़ा न खोलेगा सदा-ए-दर्द पर

बस्तियों में शोरأओ-ग़ुल शाम ओ सहर करते हो क्यूँ

मुझ से ग़ुर्बत मोल ले कर कौन घर ले जाएगा

तुम मुझे रुस्वा सर-ए-बाज़ार-ए-ज़र करते हो क्यूँ

आँख के अँधों को क्यूँ दिखलाते हो परवाज़-ए-हर्फ़

काग़ज़ों पे अब तमाशा-ए-हुनर करते हो क्यूँ

तज़्किरा लिखते हो क्या मेरी शिकस्त-ओ-रेख़्त का

लफ़्ज़ की बस्ती में मअ'नी को खंडर करते हो क्यूँ

दोस्तो! बीनाई बख़्शेगी तुम्हें उन की उड़ान

पंछियों को छोड़ दो बे-बाल-ओ-पर करते हो क्यूँ

लफ़्ज़ अगर बोते तो फिर फ़स्ल-ए-मआनी काटते

दोस्तो! अब शिकवा-ए-अहल-ए-हुनर करते हो क्यूँ

ज़ालिमों के साथ मिल जाओ रहोगे ऐश में

उम्र 'साजिद' कस्मपुर्सी में बसर करते हो क्यूँ

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