दामन-ए-दिल है तार तार अपना

दामन-ए-दिल है तार तार अपना

काम कर ही गई बहार अपना

जब से तस्कीन दे गया है कोई

और भी दिल है बे-क़रार अपना

देख कर भी उन्हें न देख सके

रह गया शौक़-ए-इंतिज़ार अपना

जुस्तुजू आ गई सर-ए-मंज़िल

रह गया राह में ग़ुबार अपना

वो नज़र फिर गई तो क्या होगा

उस नज़र तक है ए'तिबार अपना

इस की हर जुम्बिश-ए-नज़र के साथ

रुख़ बदलती गई बहार अपना

हर-नफ़स है उन्हीं की याद 'इक़बाल'

ग़म है कैसा सदा-बहार अपना

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