उस ने दिल से निकाल रक्खा है
उस ने दिल से निकाल रक्खा है
किस मुसीबत में डाल रक्खा है
ग़ौर से देख उस की आँखों में
रौशनी का कमाल रक्खा है
उस से होती नहीं मुलाक़ातें
उस ने वा'दों पे टाल रक्खा है
मेरे आँगन में क्या ख़ुशी आए
सामने ग़म का जाल रक्खा है
वो हमें पूछने नहीं आता
हम ने जिस को सँभाल रक्खा है
उस की हम इस अदा पे हैं क़ुर्बान
राब्ता तो बहाल रक्खा है
ये किसी तौर खुल नहीं पाता
किस ने किस का ख़याल रक्खा है
इस कुदूरत से मुझ को मिलता है
जैसे शीशे में बाल रक्खा है
जिस का अपना नहीं जवाब कोई
उस के आगे सवाल रक्खा है
ऐ 'पयाम' उस की भी ख़बर ले लो
कर के जिस ने निढाल रक्खा है
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