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जब वो लब-ए-नाज़ुक से कुछ इरशाद करेंगे - इक़बाल मतीन कविता - Darsaal

जब वो लब-ए-नाज़ुक से कुछ इरशाद करेंगे

जब वो लब-ए-नाज़ुक से कुछ इरशाद करेंगे

हम ऐ दिल-ए-मरहूम तुझे याद करेंगे

अब तो ये तक़ाज़े हैं किसी दुश्मन-ए-जाँ के

तुम उफ़ न करोगे भी तो बेदाद करेंगे

हम आप जला लेंगे सरिश्क-ए-सर-ए-मिज़्गाँ

अब आप कहाँ तक सितम ईजाद करेंगे

इक दिल के उजड़ जाने का ग़म हो तो कहाँ तक

आओ कि ग़म-ए-दिल ही को आबाद करेंगे

हम अहल-ए-वफ़ा तेरी जफ़ाओं पे जो चुप हैं

जी लेंगे तो अपने ही से फ़रियाद करेंगे

ये मेज़ ये कुर्सी ये किताबें ये खुला-पन

चुप चुप से किसी शख़्स को सब याद करेंगे

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