रोता है कोई किसी के ग़म में
सब अपने ही दुख बिचारते हैं
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जब साया भी शीशे की तरह टूट गया
बख़्शे न गए एक को बख़्शा न कभी
बंद आँखों में सारा तमाशा देख रहा था
चश्म-ए-ख़ाना मक़ाम-ए-दर्द का है
सरहद-ए-जाँ तलक क़लम-रौ दिल
ख़्वाब बर्फ़ानी चिता है
आँखों के चराग़ वारते हैं
मैं नहीं मिलता किसी से