मैं नहीं मिलता किसी से
बंद फाटक बोलता है
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बंद आँखों में सारा तमाशा देख रहा था
आँखों के चराग़ वारते हैं
जब साया भी शीशे की तरह टूट गया
बख़्शे न गए एक को बख़्शा न कभी
सरहद-ए-जाँ तलक क़लम-रौ दिल
रोता है कोई किसी के ग़म में
ख़्वाब बर्फ़ानी चिता है
चश्म-ए-ख़ाना मक़ाम-ए-दर्द का है