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ख़्वाब बर्फ़ानी चिता है - इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी कविता - Darsaal

ख़्वाब बर्फ़ानी चिता है

ख़्वाब बर्फ़ानी चिता है

धूप में रक्खा हुआ है

हम को पत्थर जानते हो

ख़ैर अपना भी ख़ुदा है

मेरे दुख सुख का तमस्ख़ुर

सब का ज़ाती मसअला है

एक सन्नाटा है दिल में

एक नय में गूँजता है

मैं नहीं मिलता किसी से

बंद फाटक बोलता है

सख़्त अर्ज़ां हैं दुआएँ

बेश-क़ीमत बद-दुआ है

जेब में बारा बजे हैं

ज़ाइचा अच्छा बना है

सिर्फ़ उस के दर से उम्मीद

सिर्फ़ अपना आसरा है

फूल सी नन्ही हथेली

वक़्त पत्थर तोड़ता है

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