कभी आइने सा भी सोचना मुझे आ गया
कभी आइने सा भी सोचना मुझे आ गया
मिरा दिल के बीच ही टूटना मुझे आ गया
तिरी पहली दीद के साथ ही वो फ़ुसूँ भी था
तुझे देख कर तुझे देखना मुझे आ गया
कोई गहरे नील सा सेहर है तिरी आँख में
ये वो झील है जहाँ डूबना मुझे आ गया
मुझे क्या जो हो कोई लय में शेर में रंग में
मिरा दुख ये है उसे ढूँडना मुझे आ गया
कि अदा-ए-यार पे मुनहसिर मिरी चाल थी
कहीं जीतना कहीं हारना मुझे आ गया
जहाँ फ़र्त-ए-मस्ती में कज-क़दम थे समन-बाराँ
कोई गिर रहा था तो थामना मुझे आ गया
बड़े काम की थी जो गुफ़्तुगू रही रू-ब-रू
तू न जान, पर तुझे जानना मुझे आ गया
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