Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_19f2d71f62546f4b8c6fbcac68f38682, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जो ज़ख़्म जम्अ किए आँख-भर सुनाता हूँ - इक़बाल कौसर कविता - Darsaal

जो ज़ख़्म जम्अ किए आँख-भर सुनाता हूँ

जो ज़ख़्म जम्अ किए आँख-भर सुनाता हूँ

सुनोगे बंद ज़बाँ क्या नज़र सुनाता हूँ

जो सुन सको तो सुकूत-ए-पस-ए-नवा भी सुनो

यही तो मैं तुम्हें शाम ओ सहर सुनाता हूँ

निगाह लाओ जो रंग-ए-सदा कशीद करे

कि मैं तो ख़ामोशियों के हुनर सुनाता हूँ

यही कमाल है मेरे अलग तकल्लुम का

ख़बर भी होती नहीं जो ख़बर सुनाता हूँ

अगरचे एक ही दरिया की नग़्मा-ख़्वानी है

किनारा सौत तिरी मैं भँवर सुनाता हूँ

तुम्हारे वास्ते शायद मिरा कलाम न हो

जिन्हें ख़बर नहीं मैं क्या ख़बर सुनाता हूँ

ठहर गया है मिरे हर्फ़ का यही मेआर

धुआँ उड़ाता नहीं मैं शरर सुनाता हूँ

(936) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jo ZaKHm Jama Kiye Aankh-bhar Sunata Hun In Hindi By Famous Poet Iqbal Kausar. Jo ZaKHm Jama Kiye Aankh-bhar Sunata Hun is written by Iqbal Kausar. Complete Poem Jo ZaKHm Jama Kiye Aankh-bhar Sunata Hun in Hindi by Iqbal Kausar. Download free Jo ZaKHm Jama Kiye Aankh-bhar Sunata Hun Poem for Youth in PDF. Jo ZaKHm Jama Kiye Aankh-bhar Sunata Hun is a Poem on Inspiration for young students. Share Jo ZaKHm Jama Kiye Aankh-bhar Sunata Hun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.