यही नहीं कि निगाहों को अश्क-बार किया
यही नहीं कि निगाहों को अश्क-बार किया
तिरे फ़िराक़ में दामन भी तार तार किया
मता-ए-इश्क़ यही हासिल-ए-हयात यही
ख़ुलूस नज़र किया और दिल निसार किया
यही बस एक ख़ता वज्ह-ए-बे-क़रारी थी
जो रेग-ज़ार में बाराँ का इंतिज़ार किया
ज़र-ए-बयाँ से मुज़य्यन नुक़ूश-ए-हुस्न किए
मता-ए-हर्फ़ को मिदहत-सरा-ए-यार किया
पलट के आ गए नाले जो आसमानों से
ख़ुदा को छोड़ दिया कुफ़्र इख़्तियार किया
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