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साइल के लबों पर है दुआ और तरह की - इक़बाल कैफ़ी कविता - Darsaal

साइल के लबों पर है दुआ और तरह की

साइल के लबों पर है दुआ और तरह की

अफ़्लाक से आती है सदा और तरह की

है ज़ीस्त अगर जुर्म तो ऐ मुंसिफ़-ए-आलम

जुर्म और तरह का है सज़ा और तरह की

इस दिल में है मफ़्हूम-ए-करम और तरह का

उस दिल में है तफ़्हीम-ए-वफ़ा और तरह की

फूलों का तबस्सुम भी वो पहला सा नहीं है

गुलशन में भी चलती है हवा और तरह की

देते हैं फ़क़ीरों को सज़ा आज भी 'कैफ़ी'

लोग और तरह से तो ख़ुदा और तरह की

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