इक़बाल कैफ़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इक़बाल कैफ़ी
नाम | इक़बाल कैफ़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Iqbal Kaifi |
यही नहीं कि निगाहों को अश्क-बार किया
फूलों का तबस्सुम भी वो पहला सा नहीं है
मोहब्बतों को भी उस ने ख़ता क़रार दिया
मैं ऐसे हुस्न-ए-ज़न को ख़ुदा मानता नहीं
ख़िज़ाँ का दौर भी आता है एक दिन 'कैफ़ी'
गुहर समझा था लेकिन संग निकला
ग़ज़ल के रंग में मल्बूस हो कर
देखा है मोहब्बत को इबादत की नज़र से
अटे हुए हैं फ़क़ीरों के पैरहन 'कैफ़ी'
अफ़सोस माबदों में ख़ुदा बेचते हैं लोग
यही नहीं कि निगाहों को अश्क-बार किया
सुना है उस ने ख़िज़ाँ को बहार करना है
साइल के लबों पर है दुआ और तरह की
साहिल के तलबगार भी क्या ख़ूब रहे हैं
मोहब्बतों ने बड़ी हेर-फेर कर दी है
मौज-ए-बला में रोज़ कोई डूबता रहे
लब-ए-गुदाज़ पे अल्फ़ाज़-ए-सख़्त रहते हैं
कैफ़-ए-हयात तेरे सिवा कुछ नहीं रहा
गुहर समझा था लेकिन संग निकला
बे-कसी पर ज़ुल्म ला-महदूद है