निगाहों से मेरी निगाहें बचाए
निगाहों से मेरी निगाहें बचाए
चले आ रहे हैं वो तूफ़ाँ उठाए
लहू दिल का अश्कों में क्यूँ आ न जाए
कहाँ तक कोई राज़-ए-उल्फ़त छुपाए
उसी की है दुनिया उसी का ज़माना
जो सब कुछ हटा कर कभी कुछ न पाए
अभी कुछ है बाक़ी निशान-ए-नशेमन
कहो बर्क़ से और अभी ज़ुल्म ढाए
चले आएँगे ख़ुद वो बेताब हो कर
जुनून-ए-मोहब्बत मिरा बढ़ तो जाए
निराले हैं रस्म-ओ-रिवाज-ए-मोहब्बत
वही पार होता है जो डूब जाए
रहा एक आलम न 'इक़बाल' अपना
कभी रो दिए तो कभी मुस्कुराए
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