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इश्क़ इतना कमाल रखता है - इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल कविता - Darsaal

इश्क़ इतना कमाल रखता है

इश्क़ इतना कमाल रखता है

हुस्न को ग़म-शनास करता है

चश्म-ए-साक़ी में जाम-ए-जम की क़सम

रंग-ए-दुनिया-ओ-दीं छलकता है

शम-ए-महफ़िल हो या कि परवाना

वो भी जलती है ये भी जलता है

डूब जाए न ग़म का मय-ख़ाना

जाम-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं छलकता है

बस ऐ फ़ित्ना-ए-ख़िराम-ए-नाज़ ठहर

अब क़यामत का दिल मचलता है

मस्लहत ये है तुम बदल जाओ

रंग-ए-महफ़िल अगर बदलता है

ग़म-ए-जानाँ से बच गए 'इक़बाल'

ग़म-ए-दौराँ से कौन बचता है

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