इश्क़ इतना कमाल रखता है
इश्क़ इतना कमाल रखता है
हुस्न को ग़म-शनास करता है
चश्म-ए-साक़ी में जाम-ए-जम की क़सम
रंग-ए-दुनिया-ओ-दीं छलकता है
शम-ए-महफ़िल हो या कि परवाना
वो भी जलती है ये भी जलता है
डूब जाए न ग़म का मय-ख़ाना
जाम-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं छलकता है
बस ऐ फ़ित्ना-ए-ख़िराम-ए-नाज़ ठहर
अब क़यामत का दिल मचलता है
मस्लहत ये है तुम बदल जाओ
रंग-ए-महफ़िल अगर बदलता है
ग़म-ए-जानाँ से बच गए 'इक़बाल'
ग़म-ए-दौराँ से कौन बचता है
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