आँखों को इंतिशार है दिल बे-क़रार है
आँखों को इंतिशार है दिल बे-क़रार है
ऐ आने वाले आक़ा तिरा इंतिज़ार है
बालीं पे वक़्त-ए-नज़अ' कोई शर्मसार है
ऐ ज़िंदगी पलट कि तिरा इंतिज़ार है
अल्लाह री ये नज़ाकत-ए-यक-जल्वा-ए-निगाह
ख़ुद उन का हुस्न उन की तबीअ'त पे बार है
जीने पे इख़्तियार न मरने पे इख़्तियार
सदक़े इस इख़्तियार के क्या इख़्तियार है
क़िस्मत जुदा सही प हक़ीक़त तो एक है
जो शम-ए-बज़्म है वही शम-ए-मज़ार है
तुम दूर हो तो लाख बहारें भी हैं ख़िज़ाँ
तुम पास हो अगर तो ख़िज़ाँ भी बहार है
इक़बाल आज शहर-ए-निगाराँ में मेरा दिल
इस पर निसार है कभी उस पर निसार है
(832) Peoples Rate This