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खोए गए तो आइने को मो'तबर किया - इक़बाल हैदर कविता - Darsaal

खोए गए तो आइने को मो'तबर किया

खोए गए तो आइने को मो'तबर किया

हम ने तिरी तलाश में अपना सफ़र किया

बे-घर मुसाफ़िरों के मुक़द्दर में ख़ाक है

सो हम ने गर्द-ए-राह को दीवार-ओ-दर किया

उस मरकज़-ए-जमाल के हम भी असीर हैं

जिस मरकज़-ए-जमाल ने हर दिल में घर किया

शहर-ए-वफ़ा ख़मोश है पत्थर बने बग़ैर

कैसा फ़रेब-ए-कोह-ए-निदा ने असर किया

बाज़ू समेटते हैं दरख़्तों पे कुछ तुयूर

शायद किसी ने तज़्किरा-ए-बाल-ओ-पर किया

यादों की भीड़ में भी है तन्हाई हम-सफ़र

उस की हो ख़ैर जिस ने हमें दर-ब-दर किया

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