जो तेरे दर्द हैं वही सब मेरे दर्द हैं
जो तेरे दर्द हैं वही सब मेरे दर्द हैं
कहने को अपनी अपनी जगह फ़र्द फ़र्द हैं
धुँदला गए हैं अक्स नज़र है भँवर भँवर
ख़्वाबों में भी ख़याल के आईने गर्द हैं
पेशानियों पे वक़्त शिकन-दर-शिकन नहीं
चेहरा-ब-चेहरा लिखे हुए दिल के दर्द हैं
इक दूसरे को जान के पहचानते नहीं
हम लोग सारे एक क़बीले के फ़र्द हैं
भीगी हथेलियों से न पढ़ कल की ज़िंदगी
गहरी हर इक लकीर सही हाथ सर्द हैं
ये ख़ुश्क लब ये पाँव के छाले ये सर की धूल
हम शहर की फ़ज़ा में भी सहरा-नवर्द हैं
'इक़बाल' जब से फूल हैं गुल-दान के असीर
ख़ुशबू उड़ी उड़ी सी है और रंग ज़र्द हैं
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