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जो तेरे दर्द हैं वही सब मेरे दर्द हैं - इक़बाल हैदर कविता - Darsaal

जो तेरे दर्द हैं वही सब मेरे दर्द हैं

जो तेरे दर्द हैं वही सब मेरे दर्द हैं

कहने को अपनी अपनी जगह फ़र्द फ़र्द हैं

धुँदला गए हैं अक्स नज़र है भँवर भँवर

ख़्वाबों में भी ख़याल के आईने गर्द हैं

पेशानियों पे वक़्त शिकन-दर-शिकन नहीं

चेहरा-ब-चेहरा लिखे हुए दिल के दर्द हैं

इक दूसरे को जान के पहचानते नहीं

हम लोग सारे एक क़बीले के फ़र्द हैं

भीगी हथेलियों से न पढ़ कल की ज़िंदगी

गहरी हर इक लकीर सही हाथ सर्द हैं

ये ख़ुश्क लब ये पाँव के छाले ये सर की धूल

हम शहर की फ़ज़ा में भी सहरा-नवर्द हैं

'इक़बाल' जब से फूल हैं गुल-दान के असीर

ख़ुशबू उड़ी उड़ी सी है और रंग ज़र्द हैं

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