तुम ग़ैरों से हँस हँस के मुलाक़ात करो हो
तुम ग़ैरों से हँस हँस के मुलाक़ात करो हो
और हम से वही ज़हर-भरी बात करो हो
बच बच के गुज़र जाओ हो तुम पास से मेरे
तुम तो ब-ख़ुदा ग़ैरों को भी मात करो हो
नश्तर सा उतर जावे है सीने में हमारे
जब माथे पे बल डाल के तुम बात करो हो
तक़वे भी बहक जावें हैं महफ़िल में तुम्हारी
तुम अपनी इन आँखों से करामात करो हो
फूलों की महक आवे है साँसों में तुम्हारी
मोती से बिखर जावें हैं जब बात करो हो
हम ग़ैरों के आगे तुम्हें क्या हाल बताएँ
पास आ के सुनो दूर से क्या बात करो हो
क्या कह के पुकारेंगे तुम्हें लोग ये सोचो
'इक़बाल' पे तुम ज़ुल्म तो दिन रात करो हो
(1990) Peoples Rate This