ज़वाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न था और मैं था
ज़वाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न था और मैं था
अजब क़हत-ए-सुख़न था और मैं था
पुराने लफ़्ज़ तफ़्सीरें नई थीं
ग़ज़ल का बाँकपन था और मैं था
अजब रूदाद थी मेरे सफ़र की
लिबास-ए-बे-शिकन था और मैं था
सज़ा थी इम्तिहाँ था क्या पता इक
सुलगता अग्नी बन था और मैं था
वही उस की शिकायत थी पुरानी
वही मेरा चलन था और मैं था
वही मिट्टी वही पानी हवा थी
वही मेरा वतन था और मैं था
वो इक लम्हा कि मेरे सर पे 'आसिफ़'
बहुत दुश्वार-कुन था और मैं था
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