क़ैद-ए-कौन-ओ-मकान से निकला
क़ैद-ए-कौन-ओ-मकान से निकला
हर नफ़स इम्तिहान से निकला
मैं बुझा भी तो मेरे बा'द यहाँ
इक धुआँ कैसी शान से निकला
मंज़िल गुम-शुदा सुराग़ तिरा
पाँव के इक निशान से निकला
शुक्र है उस की याद का पैकर
मेरे वहम-ओ-गुमान से निकला
एक ठोकर पे नूर का दरिया
शब की अंधी चटान से निकला
बौखलाई हवा कि ताइर-ए-नौ
कितनी ऊँची उड़ान से निकला
आग पानी हवा और मिट्टी के
'आसिफ़' हर इम्तिहान से निकला
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