वो किसी को याद कर के मुस्कुराया था उधर
और मैं नादान ये समझा कि वो मेरा हुआ
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जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
कभी कसक जुदाई की कभी महक विसाल की
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
सताया आज मुनासिब जगह पे बारिश ने
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
तमाशाई बने रहिए तमाशा देखते रहिए
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
सिलसिला ख़त्म हुआ जलने जलाने वाला
आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की