वैसे भी उस से कोई रब्त न रक्खा मैं ने
यूँ भी दुनिया में कशिश तेरी ब-निसबत कम थी
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वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा है
उर्दू
'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
सभी अपने नज़र आते हैं ब-ज़ाहिर लेकिन
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ
रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया
भीगी भीगी पलकों पर ये जो इक सितारा है
कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए