ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई
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मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
ये नहीं पहले तिरी याद से निस्बत कम थी
सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत
किसी को खो के पा लिया किसी को पा के खो दिया
फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का
वैसे भी उस से कोई रब्त न रक्खा मैं ने
ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की