तेरे किरदार को इतना तो शरफ़ हासिल है
तू नहीं था तो कहानी में हक़ीक़त कम थी
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सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की
फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए
सुनो समुंदर की शोख़ लहरो हवाएँ ठहरी हैं तुम भी ठहरो
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया
तुम्हारी ख़ुश्बू थी हम-सफ़र तो हमारा लहजा ही दूसरा था
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं