सुनो समुंदर की शोख़ लहरो हवाएँ ठहरी हैं तुम भी ठहरो
वो दूर साहिल पे एक बच्चा अभी घरौंदे बना रहा है
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तमाशाई बने रहिए तमाशा देखते रहिए
आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की
उर्दू
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की
ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा है
ये नहीं पहले तिरी याद से निस्बत कम थी
कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए