ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
वही बादल था मिरी प्यास बुझाने वाला
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मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की
फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
सताया आज मुनासिब जगह पे बारिश ने