आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की
रौशनी की सोहबत में एक दिन गुज़ारा है
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ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की
फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा है
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
किसी को खो के पा लिया किसी को पा के खो दिया
वो किसी को याद कर के मुस्कुराया था उधर
सताया आज मुनासिब जगह पे बारिश ने
वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ
रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया
ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था