रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया

रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया

मुंजमिद आँखों के दरिया को रवानी दे गया

मैं सदाक़त का अलम-बरदार समझा था जिसे

वो भी जब रुख़्सत हुआ तो इक कहानी दे गया

पहले अपना तज्ज़िया करने पे उकसाया मुझे

फिर नतीजा-ख़ेज़ियों को बे-ज़बानी दे गया

क्यूँ उजालों की नवाज़िश हो रही है हर तरफ़

क्या कोई बुझते चराग़ों को जवानी दे गया

क्यूँ न इस आवारा बादल को दुआएँ दीजिए

जो समुंदर को ख़लिश सहरा को पानी दे गया

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Raat Ka Pichhla Pahar Kaisi Nishani De Gaya In Hindi By Famous Poet Iqbal Ashhar. Raat Ka Pichhla Pahar Kaisi Nishani De Gaya is written by Iqbal Ashhar. Complete Poem Raat Ka Pichhla Pahar Kaisi Nishani De Gaya in Hindi by Iqbal Ashhar. Download free Raat Ka Pichhla Pahar Kaisi Nishani De Gaya Poem for Youth in PDF. Raat Ka Pichhla Pahar Kaisi Nishani De Gaya is a Poem on Inspiration for young students. Share Raat Ka Pichhla Pahar Kaisi Nishani De Gaya with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.