ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की

ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की

बुझा चराग़ तो जुगनू ने रहनुमाई की

तिरे ख़याल ने तस्ख़ीर कर लिया है मुझे

ये क़ैद भी है बशारत भी है रिहाई की

क़रीब आ न सकी कोई बे-वज़ू ख़्वाहिश

बदन-सराए में ख़ुशबू थी पारसाई की

मता-ए-दर्द है दिल में तो आँख में आँसू

न रौशनी की कमी है न रौशनाई की

अब अपने आप को क़तरा भी कह नहीं सकता

बुरा किया जो समुंदर से आश्नाई की

उसे भी शह ने मुसाहिब बना लिया अपना

जिस आदमी से तवक़्क़ो थी लब-कुशाई की

वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का

उसी पे ख़त्म है तासीर बेवफ़ाई की

(1633) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

KHuda Ne Laj Rakhi Meri Be-nawai Ki In Hindi By Famous Poet Iqbal Ashhar. KHuda Ne Laj Rakhi Meri Be-nawai Ki is written by Iqbal Ashhar. Complete Poem KHuda Ne Laj Rakhi Meri Be-nawai Ki in Hindi by Iqbal Ashhar. Download free KHuda Ne Laj Rakhi Meri Be-nawai Ki Poem for Youth in PDF. KHuda Ne Laj Rakhi Meri Be-nawai Ki is a Poem on Inspiration for young students. Share KHuda Ne Laj Rakhi Meri Be-nawai Ki with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.