इक़बाल अशहर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इक़बाल अशहर
नाम | इक़बाल अशहर |
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अंग्रेज़ी नाम | Iqbal Ashhar |
जन्म की तारीख | 1965 |
जन्म स्थान | Delhi |
वो किसी को याद कर के मुस्कुराया था उधर
वैसे भी उस से कोई रब्त न रक्खा मैं ने
वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
तेरे किरदार को इतना तो शरफ़ हासिल है
सुनो समुंदर की शोख़ लहरो हवाएँ ठहरी हैं तुम भी ठहरो
सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
सताया आज मुनासिब जगह पे बारिश ने
सभी अपने नज़र आते हैं ब-ज़ाहिर लेकिन
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
किसी को खो के पा लिया किसी को पा के खो दिया
जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
उर्दू
ये नहीं पहले तिरी याद से निस्बत कम थी
वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ
तुम्हारी ख़ुश्बू थी हम-सफ़र तो हमारा लहजा ही दूसरा था
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
तमाशाई बने रहिए तमाशा देखते रहिए
सिलसिला ख़त्म हुआ जलने जलाने वाला
रास्ता भूल गया एक सितारा अपना
रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया
प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था