मुझ पर निगाह-ए-गर्दिश-ए-दौराँ नहीं रही

मुझ पर निगाह-ए-गर्दिश-ए-दौराँ नहीं रही

शायद किसी की ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ नहीं रही

वहशत तक आ गया है मोहब्बत का सिलसिला

अब मुझ को फ़िक्र-ए-जेब-ओ-गरीबां नहीं रही

मेरे जिगर में ख़ून के क़तरे नहीं रहे

उन की नज़र में बरश-ए-पिन्हाँ नहीं रही

ज़ौक़-ए-तलब से तेरी इनायात बढ़ गईं

मेरी नज़र में वुसअ'त-ए-दामाँ नहीं रही

दिल यूँ बुझा बुझा सा ही खो कर तुम्हारी याद

महफ़िल में जैसे शम-ए-फ़रोज़ाँ नहीं रही

किस दर्जा दिल-शिकन है गुलिस्ताँ का इंक़लाब

बुलबुल भी अब चमन में ग़ज़ल-ख़्वाँ नहीं रही

'इक़बाल' सर्द हो गई बज़्म-ए-हयात भी

जब से दिलों में आतिश-ए-सोज़ाँ नहीं रही

(667) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Mujh Par Nigah-e-gardish-e-dauran Nahin Rahi In Hindi By Famous Poet Iqbal Abidi. Mujh Par Nigah-e-gardish-e-dauran Nahin Rahi is written by Iqbal Abidi. Complete Poem Mujh Par Nigah-e-gardish-e-dauran Nahin Rahi in Hindi by Iqbal Abidi. Download free Mujh Par Nigah-e-gardish-e-dauran Nahin Rahi Poem for Youth in PDF. Mujh Par Nigah-e-gardish-e-dauran Nahin Rahi is a Poem on Inspiration for young students. Share Mujh Par Nigah-e-gardish-e-dauran Nahin Rahi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.