अब वो पहला सा इल्तिफ़ात कहाँ

अब वो पहला सा इल्तिफ़ात कहाँ

आप सुनते हैं मेरी बात कहाँ

मेरी दीवानगी का ज़िक्र छिड़ा

आज पहुँचेगी जाने बात कहाँ

दीप क्या दिल जलाए बैठे हैं

फिर भी वो रौनक़-ए-हयात कहाँ

ज़िंदगी बन गई है अफ़्साना

मुझ को ले आए वाक़िआ'त कहाँ

ये बताऊँ तो बात जाएगी

लुट गई दिल की काएनात कहाँ

ये ज़माना भी जानता होगा

हम को ले आए हादसात कहाँ

उन की नज़रें बदल गईं 'इक़बाल'

रास आएगी अब हयात कहाँ

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