हर एक शख़्स के विज्दान से ख़िताब करे
हर एक शख़्स के विज्दान से ख़िताब करे
नए लिबास की ख़्वाहिश नया बदन ढूँडे
समुंदरों में उतरते चले गए लेकिन
कसाफ़तों के जरासीम साथ साथ रहे
न जाने कौन ग़म-ए-काएनात से छुप कर
मिरे वजूद में बैठा है कुंडली मारे
शुऊरी तौर पर इरफ़ान-ए-ज़ात की ख़ातिर
कभी जो सर को उठाया तो टूट-फूट गए
तअ'ल्लुक़ात की ज़ंजीरें टूटती ही नहीं
हमें पुकार रहे हैं ख़ला के बाशिंदे
(987) Peoples Rate This