कौन सा ग़म है मिरे दिल में जो मेहमान नहीं

कौन सा ग़म है मिरे दिल में जो मेहमान नहीं

मुझ पे कम ये भी मिरे यारों का एहसान नहीं

तीशा-ए-वक़्त ने हर नक़्श बदल डाला है

कल की तस्वीर मिरी आज की पहचान नहीं

कम नहीं महर-ए-दरख़्शाँ से मिरा दाग़-ए-जिगर

मतला-ए-सुब्ह से कम मेरा गिरेबान नहीं

शहर-ए-बे-मेहर में तू ज़ख़्म दिखाता है किसे

तेरा पुरसाँ कोई याँ ऐ दिल-ए-नादान नहीं

आओ मिल बैठ के हम बाँट लें बार-ए-ग़म-ए-दिल

फ़ाएदा सब का है इस में कोई नुक़सान नहीं

दिल में दर आए मिरे हर कोई दुख-दर्द समेत

इस में वुसअत भी है और दर पे भी दरबान नहीं

रू-ब-रू आईने के मैं हूँ नज़र वो आए

हो भी सकता है ये होना मगर आसान नहीं

दिल में गर फ़िक्र-ए-कम-ओ-बेश न होवे 'शाहिद'

तोदा-ए-ख़ाक कम-अज़ तख़्त-ए-सुलैमान नहीं

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